Wednesday, May 19, 2010

पेड़ - गुलजार


मोड़ पे देखा है , बूढ़ा सा एक पेड़ कभी
मेरा वाकिफ है सालों से मैं उसे जानता हूँ

जब मैं छोटा था तो एक आम उड़ाने के लिए
परली दीवार से कंधो पे चढ़ा था उसके
जाने दुखती हुई किस साख से जा पाँव लगा
धाड़  से फेंक दीया था मुझे नीचे उसने

और जब हामला थी बेवा तो हर दिन
मेरी बीवी की तरफ केरियाँ फेकी थी इसी ने






वख्त के साथ सभी फुल सभी पत्ते गए
तब भी जल जाता था जब मुन्ने से कहती बीबा
हाँ उसी पेड़ से आया है तू पेड़ का फल है
अब भी जल जाता हूँ जब खांसकर कहता है
क्यों सर के सभी बाल गए

सुबह से काट रहे हैं वो कमिटी वाले
मोड़ तक जाने की हिम्मत नहीं होती मुझको

Bookmark and Share

1 comment:

  1. gulzar sir ki main deewani hoon :)
    now i m in love with 'mirzya'

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...