Sunday, December 5, 2010

गधे खा रहे चवनप्रास देखो - स्व.ओमप्रकाश आदित्य

इधर भी गधे हैं , उधर भी गधे हैं    
जिधर भी देखता हूँ गधे ही गधे हैं

गधे हंस रहे , आदमी रो रहा है
 हिन्दोस्तान में ये क्या हो रहा है

 जवानी का आलम गधों के लिए है
 ये रसिया ,ये बालम गधों के लिए है

 ये दिल्ली ये पालम गधों के लिए है
 ये संसार सालम गधों के लिए है

 पिलाए जा साकी ,पिलाए जा डट के
 तू व्हिस्की के मटके पे मटके पे मटके

 मैं दुनिया को जब भूलना चाहता हूँ
 गधों की तरह झूमना चाहता हूँ

घोड़ों को मिलती नही घास देखो
 गधे खा रहे चवनप्रास देखो

 यहाँ आदमी की कहाँ कब बनी थी
 ये दुनिया गधों के लिए ही बनी थी

 जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
 जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है

 जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
 जो माइक पे चीखे वो असली गधा है

 मै क्या बक गया हूँ , ये क्या कह गया हूँ
 नशे की पिनक मे कहाँ बह गया हूँ
 
 मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था
 वो ठरॉ था भीतर जो अटका हुआ था
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