Saturday, May 8, 2010

फिर हरे होने लगे जख्म पुराने कितने- पूनम कौसर

उनको देखा तो पलट आए जमाने कितने .
फिर हरे होने लगे जख्म पुराने कितने

मशवरा मेरी वसीयत का मुझे देते हैं
हो गए हैं, मेरे मासूम सियाने कितने

मेरे बचपन की वो बस्ती भी अजब बस्ती थी
दोश्त बन जाते थे इक पल में बेगाने कितने

उनकी तस्वीर तो रख दी है हटाकर लेकिन
फिर भी कहती है यह दीवार फसाने कितने

कितनी सुनसान है कौसर अब इन आँखो की गली
इनमें बसते थे कभी ख्वाब सुहाने कितने !

मेरा नया घर

मेरे नये घर में
पत्नी बच्चे और मैं
बड़े सुकून से रहते हैं

मैने यह नया घर बसाया है
पुराने घर मे सुकून नहीं था
बूढ़े माँ बाप थे
मिलने जुलने वाले रिश्तेदार थे
जो दुनिया जहान की बातें करके
हमारे जीवन मे व्यवधान डालते थे

माँ बाप खाँसते खाँसते घर भर देते थे
पल पल पर आवाज देते थे
दीवारोँ का सहारा लेकर चलते थे
और पेंट खराब कर देते थे

My new house 


My new house

 Wife, children and I
 Large peaceful living



I have built this new house

 Comfort in the old house was not 
The old parents wereMingle with people
 who had relatives 
World in which things of the world
 by Disruption in our lives were put



Parents used to coughing, coughing 

throughout the house
 Every moment the voice used to Moved
 with the support of wall
 Would spoil and paint

Sunday, May 2, 2010

वो अपने आप को अक्सर तलाश करता है - आचार्य सारथी

वो कौन है जो मेरा घर तलाश करता है

ख़ुशी को ढूंढती   है इस कदर दुनिया 
की जैसे दिल ये कोई डर तलाश करता है 

मैं तेरी ज़ात में जिंदा हूँ और धड़कता  हूँ 
मुझे तू किसलिए दर- दर तलाश करता है

मैं इस तरह ही सूरज तलाशता हूँ यहाँ 
की जैसे प्यार कोई घर तलाश करता है 

गरीब शख्स जो जीता है रोज़ मर-मर के 
उसी कर हाथ अब पत्थर तलाश करता है 

बहुत करीब से लगती है जिंदगी ऐसी
की कोई दर्द है जो घर तलाश करता है 

मैं चुप रहूँ तो मेरा दर्द छटपटाता है 
मैं कुछ कहूँ तो वो खंजर तलाश करता है 

अजीब बात है हर एक को आईना देकर 
 वो अपने आप को अक्सर तलाश करता है

कहीं हूँ सारथी मैं साँझ भी परिंदा भी 
मुझे ये वख्त बराबर तलाश करता है !

जो मेरा कद नापेगा Acharya Sarathi

जो मेरा कद नापेगा 
दुनिया की हद नापेगा

शायद वो हद नाप सके
कैसे अनहद नापेगा

वो अब मेरे खातिर ही
खुद को शायद नापेगा

उसको हद में रहना है
वो अपनी हद नापेगा

वो जो बेहद प्यारा है
तुझको बेहद नापेगा

ये बेचैन परिंदा है
सारे गुम्बद नापेगा !  Bookmark and Share

गम की दुनिया ख़ुशी पे भारी है : Aacharya Sarathi

जिंदगी क्यों किसी पे भारी है
गम की दुनिया ख़ुशी पे भारी है

मेरा हुम्दुम है प्यार का दरिया
वो मेरी तिश्नगी पे भारी है

मैं भी सूरज हूँ इस ज़माने का
तू मेरी रौशनी पे भारी है

खुदाश्नाशी का एक लम्हा भी
एक पूरी सदी पे भारी है

इस जामाने का ये करिश्मा है
जिंदगी आदमी पे भारी है

बात उलटी है दौर-इ हाज़िर की
तीरगी रौशनी पे भारी है

सारथि दर्द का खफा होना
क्यों तेरी जिंदगी पे भारी है
 
Bookmark and Share
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...