वो कौन है जो मेरा घर तलाश करता है
ख़ुशी को ढूंढती है इस कदर दुनिया
की जैसे दिल ये कोई डर तलाश करता है
मैं तेरी ज़ात में जिंदा हूँ और धड़कता हूँ
मुझे तू किसलिए दर- दर तलाश करता है
मैं इस तरह ही सूरज तलाशता हूँ यहाँ
की जैसे प्यार कोई घर तलाश करता है
गरीब शख्स जो जीता है रोज़ मर-मर के
उसी कर हाथ अब पत्थर तलाश करता है
बहुत करीब से लगती है जिंदगी ऐसी
की कोई दर्द है जो घर तलाश करता है
मैं चुप रहूँ तो मेरा दर्द छटपटाता है
मैं कुछ कहूँ तो वो खंजर तलाश करता है
अजीब बात है हर एक को आईना देकर
वो अपने आप को अक्सर तलाश करता है
कहीं हूँ सारथी मैं साँझ भी परिंदा भी
मुझे ये वख्त बराबर तलाश करता है !
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