Saturday, May 8, 2010

फिर हरे होने लगे जख्म पुराने कितने- पूनम कौसर

उनको देखा तो पलट आए जमाने कितने .
फिर हरे होने लगे जख्म पुराने कितने

मशवरा मेरी वसीयत का मुझे देते हैं
हो गए हैं, मेरे मासूम सियाने कितने

मेरे बचपन की वो बस्ती भी अजब बस्ती थी
दोश्त बन जाते थे इक पल में बेगाने कितने

उनकी तस्वीर तो रख दी है हटाकर लेकिन
फिर भी कहती है यह दीवार फसाने कितने

कितनी सुनसान है कौसर अब इन आँखो की गली
इनमें बसते थे कभी ख्वाब सुहाने कितने !

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