आँखों के सामने
गिरता है डब्लू टी सी
कानो में गूंजता है
२६/११ के बंदूकों की आवाज़
यादें ताज़ा कर देती है ये मेरियट होटल की
सपनो में जब
इराक का सफर करता हूँ
एक भी घर नही मिलता
शुकुन-ओ-चैन का
फिर लौटता हूँ , मैं
फिलिस्तीन , तालिबान , पाकिस्तान
होते हुए कश्मीर को
सुनता हूँ तिब्बत के बौद्ध-भिक्षूओं की मौन आवाजें
लगता है
हर जगह एक चीख है
जो हर मौत के साथ
दबा दी जाती है
पर , मौत की चीखें
आसानी से नही दबते
अपनी प्रतिध्वनियों के साथ
और विकराल हो जाते हैं
इससे घबराकर मैं
कानो को , आँखों को
बंद कर लेता हूँ
फिर हाथ हिलने लगते हैं