Saturday, April 24, 2010

सौदेबाज़ों से दोस्ती न की , वो दोस्ती में खूब सौदा करना



मंज़र-ए-इश्क का फूलना फलना
ये दरिया-ए-मय है या फिर कोई दवाखाना

देर शब् तेरी जुम्बिश की आखिरी वो खलिश
हमने खोया था तुझे अब तेरा पाना

रूह को भी गम है तेरे फिराक का
कैदे-हयात में इक आस्तां है सागर-ओ-मीना

तुम थे तो एक शहर थी हयात में
अब एक दलील हूँ उस्सक बूटों का बना

इश्क एक दरिया-ए-ज़ख्म है या बाज़ीचा-ए-अत्फाल
मुझसे पूछो न , न किसी मीरां  से पूछना

उसने दोस्त्दारों से पर्देकारी की, पर्देकारी में दोस्तदारी
सौदेबाज़ों से दोस्ती न की , वो दोस्ती में खूब सौदा करना

आज की रात फिर नही पढ़ा, ग़ज़ल लिख्खा है अनुपम ने
जो अब तलक समझ  में नही आया, तो क्या अब समझ के करना !

Monday, April 19, 2010

हम दीवानों की क्या हस्ती



हम दीवानों  की  क्या  हस्ती 
है  आज  यहाँ  कल  वहां  चले 
मस्ती  का  आलम  साथ  चला 
हम धुल उड़ाते  ज़हां चले

आये बनकर उल्लास अभी
आंसूं बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गए अरे
तुम कैसे आये कहाँ चले

किस  ओर चले मत यह पूछो
चलना है बस इसलिए चले
जग को अपना कुछ दिए चले
जग से अपना कुछ लिए चले

दो बात कही दो बात सुनी
कुछ हसे और कुछ रोये
छककर सुख दुःख के घुटों को
हम एक भाव से पिए चले


हम भिखमंगो की दुनिया में
स्वछन्द लुटा कर प्यार चले
हम एक निशानी सी उड़ पर
ले असफलता का भर चले

हम मान रहित अपमान रहित
जी भरकर खुलकर खेल चुके
हम हँसते हँसते आज यहाँ
प्राणों की बाज़ी हार चले

हम भला बुरा सब भूल चुके
नतमस्तक हो मुख मोड़ चले
अभिशाप उठाकर होठों से
वरदान दृगों से छोड़  चले

अब अपना और पराया क्या
आबाद रहे रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले
   

Sunday, April 18, 2010

हम किसी तरकीब से चूल्हा ज़लायेंगे ज़रूर


तेज़ बारिश हो या हलकी , भीग जायेंगे ज़रूर
हम मगर अपनी फटी छतरी उठाएंगे ज़रूर

अपने घर कुछ भी नही उम्मीद का इंधन तो है
हम किसी तरकीब से चूल्हा ज़लायेंगे ज़रूर

इस सदी ने जफ्त कर ली है जो नज्मे दर्द की
देखना उनको हमारे ज़ख्म गायेंगे ज़रूर

आसमानों की बुलंदी का जिन्हें कुछ इल्म है
देखना उन पक्षियों को घर बुलायेंगे ज़रूर



चलो यूँ ही सही


चलो यूँ  ही  सही
ये दिन भी गुज़र जायेगा ही

अँधेरा अब तलक है तो क्या गम है
उजाला आयेगा ही

वो चाहत अपनी न रही , सही लेकिन
दीवाना गायेगा ही

छोडो लम्हा लम्हा जीया करेंगे अब
जीवन संभल जायेगा ही

पर जो यादें बस चुकी है ज़ेहन में
पल-पल तो पिघलायेगा  ही !
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