आँखों के सामने
गिरता है डब्लू टी सी
कानो में गूंजता है
२६/११ के बंदूकों की आवाज़
यादें ताज़ा कर देती है ये मेरियट होटल की
सपनो में जब
इराक का सफर करता हूँ
एक भी घर नही मिलता
शुकुन-ओ-चैन का
फिर लौटता हूँ , मैं
फिलिस्तीन , तालिबान , पाकिस्तान
होते हुए कश्मीर को
सुनता हूँ तिब्बत के बौद्ध-भिक्षूओं की मौन आवाजें
लगता है
हर जगह एक चीख है
जो हर मौत के साथ
दबा दी जाती है
पर , मौत की चीखें
आसानी से नही दबते
अपनी प्रतिध्वनियों के साथ
और विकराल हो जाते हैं
इससे घबराकर मैं
कानो को , आँखों को
बंद कर लेता हूँ
फिर हाथ हिलने लगते हैं
बहुत बढ़िया अनुपम जी ! लाजवाब
ReplyDeleteशुक्रिया !!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया|
ReplyDeleteक्या आप एक उम्र कैदी का जीवन पढना पसंद करेंगे, यदि हाँ तो नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते है :-
ReplyDelete1- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
2- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteदशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ...
आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद, इसे पसंद करने के लिए.
ReplyDeleteसाथ ही दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं !!!!!!!!
@उम्र कैदी/ आशुतोष जी - लिंक के लिए धन्यवाद जल्द ही पढ़ कर अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत करूँगा .
@योगेन्द्रनाथ जी आपका 'bio'दिल को भा गया
काश हम सभी मिलकर इस सोच को आगे बढाएं !!
@सुरेन्द्र सिंह जी हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया !
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने का कष्ट करें
@अजय जी जरूर !
ReplyDeletewell done anupam!
ReplyDeletebahut khoobsurat aur kadwa sach kehti rachna...
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