Wednesday, February 23, 2011

मैं ...मैं हूँ तो मेरा मन, अब कहाँ मेरा ? - अनुपम कर्ण






वख्त दर वख्त दरकता है एक निशाँ मेरा
किसने आग़ी लगाई जो जल गया एक जहां मेरा


मेरी बंसी ने ही छीनी है मेरी आवाज को
गो तेरे किस्से बन गए एक नुमायाँ मेरा

मेरी रूहों से छलकती है तेरी आहों की खनक
वो तेरी खामोश सी नज़रें और एक अंदाज़--बयाँ मेरा 

मेरी तन्हाइयों से लिपटी है तेरी यादों की महक
मैं मैं हूँ तो मेरा मन अब कहाँ मेरा!

*******

6 comments:

  1. मेरी रूहों से छलकती है तेरी आहों की खनक
    वो तेरी खामोश सी नज़रें और एक अंदाज़-ए-बयाँ मेरा

    bahut hi badhiyaa

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  2. मेरी बंसी ने ही छीनी है मेरी आवाज को
    गो तेरे किस्से बन गए एक नुमायाँ मेरा

    awesome !

    .

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  3. Hola reflejando de esta página web es muy exorbitantes , mensaje de esta manera destacan quien ler esta página web!!!

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  4. मेरी तन्हाइयों से लिपटी है तेरी यादों की महक
    मैं ...मैं हूँ तो मेरा मन, अब कहाँ मेरा !

    वाह! बहुत खूब सभी अशार अच्छे लगे। शुभकामनायें।











    शाम ढले तो अखियाँ तुझको बरबस ढूंढने लगती है
    सुबह फिर अलसाई नजरें दुनिया देखने लगती है


    नज़रें कहाँ-कहाँ न ढूँढी, चिराग तले अँधेरा छाया
    ऋतू बसंत हो या सावन हो रह-रहकर छलकने लगती है


    पहचान तुम्हारी हो या मेरी ,इसपर सर धुनना था कैसा
    जो पहचान हमारी थी वो अब तो बासी लगती है


    अब तो अलग- अलग हैं दोनों, नाम हमारे अलग-अलग
    सोचो कितने दूर हुए क्यों अखियाँ प्यासी लगती है !
    गधे खा रहे चवनप्रास देखो - स्व.ओमप्रकाश आदित्य
    Posted on 3:29 AM comments (5)
    CATEGORIES कुछ पंक्तियाँ
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    इधर भी गधे हैं , उधर भी गधे हैं
    जिधर भी देखता हूँ गधे ही गधे हैं

    गधे हंस रहे , आदमी रो रहा है
    हिन्दोस्तान में ये क्या हो रहा है

    जवानी का आलम गधों के लिए है
    ये रसिया ,ये बालम गधों के लिए है

    ये दिल्ली ये पालम गधों के लिए है
    ये संसार सालम गधों के लिए है

    पिलाए जा साकी ,पिलाए जा डट के
    तू व्हिस्की के मटके पे मटके पे मटके

    मैं दुनिया को जब भूलना चाहता हूँ
    गधों की तरह झूमना चाहता हूँ

    घोड़ों को मिलती नही घास देखो
    गधे खा रहे चवनप्रास देखो

    यहाँ आदमी की कहाँ कब बनी थी
    ये दुनिया गधों के लिए ही बनी थी

    जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
    जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है

    जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
    जो माइक पे चीखे वो असली गधा है

    मै क्या बक गया हूँ , ये क्या कह गया हूँ
    नशे की पिनक मे कहाँ बह गया हूँ

    मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था
    वो ठरॉ था भीतर जो अटका हुआ था
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  5. घोड़ों को मिलती नही घास देखो
    गधे खा रहे चवनप्रास देखो

    यहाँ आदमी की कहाँ कब बनी थी
    ये दुनिया गधों के लिए ही बनी थी
    एक एक बात सही ---

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