कब सरहदों से
फ़ायदा हुआ इस ज़मीं को?
अभी भी दिल नहीं भरा,
बार-बार बाँट कर इस ज़मीं को?
सरहदें जैसे बदनुमा दाग़ हैं
इस ज़मीं के चेहरे पर,
खुदगर्ज़ी के चाकू से फिर
ज़ख़्मी ना करो इस ज़मीं को
अगर टूट कर ही निजात मिलती,
तो सरहद पार सिर्फ खुशियाँ ही दिखती,
सबक लो तारीख़ से
मत दो सज़ा और इस सरज़मीं को
ज़मीं को ना बांटों,
दिलों को जोड़ लो,
मिल के रिझाओ कामयाबी को,
इतेहाद से सजाओ इस ज़मीं को
मुद्दा नई सरहद का नहीं
खुशियों का हो, अमन का हो
गुलों से खूबसूरत चेहरे खिल जाएं,