Thursday, September 16, 2010

लोग थे, लोगों में बाज़ार कहाँ थे पहले - अखिलेश तिवारी

जिंदगी के ये खरीदार कहाँ थे पहले
लोग थे, लोगों में बाज़ार कहाँ थे पहले

वो जो एक दरिया था , वो कभी का रेत हुआ
ये जो अब पूल है , ये बेकार कहाँ थे पहले

बस वही एक ही तहरीर है चेहरा - चेहरा
ये नए दौर के अखबार कहाँ थे पहले

आईने ज़ख़्मी है , पथराव का वो आलम है
अपने खो जाने के आसार कहाँ थे पहले

दिल धड़कने की सदा रोज तो नही आती
या की हम खुद से खबरदार कहाँ थे पहले

नाखुदा इसलिए पेश  आये खुदाओं की तरह
हाथ 'अखिलेश' के पतवार कहाँ थे पहले

कितना मुश्किल है कोई बात छिपाए रखना - मनु गौतम

यूँ तो मुश्किल  है उम्र भर का निभाए रखना
फिर भी एक तार मुहब्बत का बचाए रखना

फिर किसी बात से वो बात निकल आएगी
कितना मुश्किल है कोई बात छिपाए रखना

अजनबियत का धुंआ आँख जलाता है मगर
हो सके अगर तुमसे आँख मिलाए रखना

जबकि सच है मेरे बर्दाश्त के बाहर ऐ दोस्त
वहां का जाम ही होठों से लगाए रखना


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