Monday, October 15, 2012

मैं जानता हूँ, यही सच है! - A perception



















मेरे ख़्वाबों के टुकड़ों को बिखेर कर देखना

शायद कोई टुकड़ा तुम्हारा भी हो!

_______


मैंने बारहा अपना आस्तित्व मिटाने की कोशिश की|

पर आस्तित्व विहीन होने के बजाय,

और मजबूत होता गया|

पीछे मूड़ के देखता हूँ, तो

असल में जिसे मैंने खोना चाहा था,

वो खोना नही था!

अजीब लगता है पर,

मैं जानता हूँ, यही सच है!

खोना भी पाने जैसा होता है|

अगर हम खोने के सिमटते दायरे को देख सकें,

तो पाने का बढ़ता दायरा साफ़ नज़र आने लगता है|

पर उलझनें तब दुखद अहसास देती है,

जब हमारी खुशी इन दायरों से परे,

कहीं और अटक जाती है|

क्या खोया? क्या पाया?


कितना अजीब है?

पाने के लिए थमना पड़ता है

समग्र नही व्यग्र होकर,

और थमना या रुकना क्या खोना नही है?

इसलिए, खोना या पाना शायद

हमारे अहसास से इतर कुछ भी नही!

हाँ, अजीब है, पर,

मैं जानता हूँ, यही सच है!
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...