मैं एक जगत को भुला
मैं भुला एक ज़माना
कितने घटना चक्रों में ,
भुला मै आना-जाना
पर दुःख-सुख की वह
सीमा, मैं पाया साकी
जीवन के बाहर जाकर
जीवन में तेरा आना
कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी ,
कहाँ गयी सुरभित हाला
कहाँ गया स्वप्निल मदिरालय
कहाँ गया स्वर्णिम प्याला
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य
हाय कब पहचाना
फुट चूका जब मधु का प्याला ,
टूट चुकी जब मधुशाला !
टूट चुकी जब मधुशाला !
सखि यह रागों की रात नही सोने की
बात जोहते इस रजनी की वज्र कठिन दिन बीते
किन्तु अंत में दुनिया हारी और हमीं तुम जीते
नरम नींद के आगे अब क्यों आँखें पंख झुकाए
सखि यह रातों की रात नही सोने की !
और अंत में
इस पार प्रिये मधु है तुम हो
उस पार न जाने क्या होगा !
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