Monday, April 19, 2010

हम दीवानों की क्या हस्ती



हम दीवानों  की  क्या  हस्ती 
है  आज  यहाँ  कल  वहां  चले 
मस्ती  का  आलम  साथ  चला 
हम धुल उड़ाते  ज़हां चले

आये बनकर उल्लास अभी
आंसूं बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गए अरे
तुम कैसे आये कहाँ चले

किस  ओर चले मत यह पूछो
चलना है बस इसलिए चले
जग को अपना कुछ दिए चले
जग से अपना कुछ लिए चले

दो बात कही दो बात सुनी
कुछ हसे और कुछ रोये
छककर सुख दुःख के घुटों को
हम एक भाव से पिए चले


हम भिखमंगो की दुनिया में
स्वछन्द लुटा कर प्यार चले
हम एक निशानी सी उड़ पर
ले असफलता का भर चले

हम मान रहित अपमान रहित
जी भरकर खुलकर खेल चुके
हम हँसते हँसते आज यहाँ
प्राणों की बाज़ी हार चले

हम भला बुरा सब भूल चुके
नतमस्तक हो मुख मोड़ चले
अभिशाप उठाकर होठों से
वरदान दृगों से छोड़  चले

अब अपना और पराया क्या
आबाद रहे रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले
   

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