हम दीवानों की क्या हस्ती
है आज यहाँ कल वहां चले
मस्ती का आलम साथ चला
हम धुल उड़ाते ज़हां चले
आये बनकर उल्लास अभी
आंसूं बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गए अरे
तुम कैसे आये कहाँ चले
किस ओर चले मत यह पूछो
चलना है बस इसलिए चले
जग को अपना कुछ दिए चले
जग से अपना कुछ लिए चले
दो बात कही दो बात सुनी
कुछ हसे और कुछ रोये
छककर सुख दुःख के घुटों को
हम एक भाव से पिए चले
हम भिखमंगो की दुनिया में
स्वछन्द लुटा कर प्यार चले
हम एक निशानी सी उड़ पर
ले असफलता का भर चले
हम मान रहित अपमान रहित
जी भरकर खुलकर खेल चुके
हम हँसते हँसते आज यहाँ
प्राणों की बाज़ी हार चले
हम भला बुरा सब भूल चुके
नतमस्तक हो मुख मोड़ चले
अभिशाप उठाकर होठों से
वरदान दृगों से छोड़ चले
अब अपना और पराया क्या
आबाद रहे रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले
perhaps written by bhagwati charan verma
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