Sunday, May 2, 2010

गम की दुनिया ख़ुशी पे भारी है : Aacharya Sarathi

जिंदगी क्यों किसी पे भारी है
गम की दुनिया ख़ुशी पे भारी है

मेरा हुम्दुम है प्यार का दरिया
वो मेरी तिश्नगी पे भारी है

मैं भी सूरज हूँ इस ज़माने का
तू मेरी रौशनी पे भारी है

खुदाश्नाशी का एक लम्हा भी
एक पूरी सदी पे भारी है

इस जामाने का ये करिश्मा है
जिंदगी आदमी पे भारी है

बात उलटी है दौर-इ हाज़िर की
तीरगी रौशनी पे भारी है

सारथि दर्द का खफा होना
क्यों तेरी जिंदगी पे भारी है
 
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