Wednesday, May 19, 2010

मुल्क मेरा इन दिनों शहरी करण की ओर है -JAYKRISHN RAY TUSHAR


ये नहीं पूछो कहाँ किस रंग का किस ओर है
इस व्यवस्था के घने जंगल में आदमखोर है

मुख्य सड़कों पर अँधेरे की भयावहता बढ़ी
जगमगाती रोशनी के बीच कारीडोर है

आत्महत्या पर किसानों की , सदन मे चुप्पियाँ
मुल्क मेरा इन दिनों शहरी करण की ओर है

भ्रष्टशासन तँत्र की नागिन बहुत लंबी हुई
है शरीके जंग कुछ तो नेवला या मोर है

कठपुतलियाँ हैं वही बदले हुए इस मंच पर
देखकर यह माजरा दर्शक बेचारा बोर है

नाव का जलमग्न होना चक्रवातोँ के बिना
है ये अंदेशा कि नाविक का हुनर कमजोर है

मौसमोँ ने कह दिया हालात सुधरे हैं मगर
शाम धुँधली दिन कळँकित रक्तरँजित भोर है

इन पतंगो का मुश्किल है उड़ना दूर तक
छत किसी की हाथ कोई और किसी की डोर है

किस तरह सदभावना के बीज का हो अँकुरण
एक है गूंगी पड़ोसन दूसरी मुँह जोर है

नाव पर चढ़ते समय भी भीड़ मे था शोरगुल
अब जो चीखेँ आ रही वो डूबने का शोर है

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