ये नहीं पूछो कहाँ किस रंग का किस ओर है
इस व्यवस्था के घने जंगल में आदमखोर है
मुख्य सड़कों पर अँधेरे की भयावहता बढ़ी
जगमगाती रोशनी के बीच कारीडोर है
आत्महत्या पर किसानों की , सदन मे चुप्पियाँ
मुल्क मेरा इन दिनों शहरी करण की ओर है
भ्रष्टशासन तँत्र की नागिन बहुत लंबी हुई
है शरीके जंग कुछ तो नेवला या मोर है
कठपुतलियाँ हैं वही बदले हुए इस मंच पर
देखकर यह माजरा दर्शक बेचारा बोर है
नाव का जलमग्न होना चक्रवातोँ के बिना
है ये अंदेशा कि नाविक का हुनर कमजोर है
मौसमोँ ने कह दिया हालात सुधरे हैं मगर
शाम धुँधली दिन कळँकित रक्तरँजित भोर है
इन पतंगो का मुश्किल है उड़ना दूर तक
छत किसी की हाथ कोई और किसी की डोर है
किस तरह सदभावना के बीज का हो अँकुरण
एक है गूंगी पड़ोसन दूसरी मुँह जोर है
नाव पर चढ़ते समय भी भीड़ मे था शोरगुल
अब जो चीखेँ आ रही वो डूबने का शोर है
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