Thursday, May 20, 2010

आदमी को साँप भी डसता नहीं क्योँ आजकल -सीताराम गुप्ता

इंसानियत से आदमी सजता नहीं क्योँ आजकल
हैवानियत पर वार भी करता नहीं क्योँ आजकल

जब से पहनी और ओढी है सकाफत दोस्तो
आदमी से आदमी मिलता नहीं क्योँ आजकल

हर सिम्त है बज्मे तरन्नुम अँजुमन दर अँजुमन
साजे दिलकश पर कहीँ बजता नहीं क्योँ आजकल

तरबतर तेजाब में चीनी व्यँजन चुन लिए
हलवा पूरी खीर अब बनता नहीं क्योँ आजकल

ऊँची ऊँची मीनारेँ अब उठ रही है हर जगह
चावल हर हाँडी में फिर पकता नहीं क्योँ आजकल

जिस जगह देखो फिजा में गुँजती है गोलियाँ
अब धमाकों से कोई डरता नहीं क्योँ आजकल

काँन्टेक्ट लेँस अब मुल्क मेँ हर मुअल्ल्जि के पास है
आँख से फिर भी हमें दिखता नहीं क्योँ आजकल

आदमी की बात ही चुभती थी पैने डँक सी
आदमी को साँप भी डसता नहीं क्योँ आजकल

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