Friday, September 3, 2010

तेरी तपिश में जला हूँ , कहीं पनाह नहीं - मनु गौतम

मैं तुमसे दूर भी जाऊँ तो मुझको राह नहीं
तेरी तपिश में जला हूँ , कहीं पनाह नहीं

कहा बस इतना ही उसने उरुज पे लाकर
यहाँ पे ला के गिराना कोई गुनाह नहीं

धड़क उठेगा अभी देखना ये दिल कमबख्त
हजार टुकड़ों में टूटा है पर तबाह नहीं
 
वो शख्स जिसपे हमने दिल ओ जान वार दिए
वो हमखयाल तो है , पर मेरा हमराह नहीं
 
अब तो बस मैं हूँ , तू है और मांझी के फ़राज़
अब तमन्ना के सराबों की  दिल  को  चाह नहीं !

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