Thursday, May 27, 2010

अपनी गजलों पर हमेशा तालियाँ अच्छी लगी - JAYKRISN ROY TUSHAR


फूल जंगल झील पर्वत घाटियाँ अच्छी लगी
दूर तक बच्चोँ को उड़ती तितलियाँ अच्छी लगी

जागती आँखों ने देखा इक मरुस्थल दूर तक
स्वप्न में जल में उछलती मछलियाँ अच्छी लगी

मूँगे माणिक से बदलते हैं कहाँ किस्मत के खेल
हाँ , मगर उनको पहनकर उँगलियाँ अच्छी लगी

देखकर मौसम का रुख तोतोँ के उड़ते झुंड को
धान की लंबी सुनहरी बालियाँ अच्छी लगी

दूर थे तो सबने मन के बीच सूनापन भरा
तुम निकट आए तो बादल बिजलियाँ अच्छी लगी

उसके मिसरे पर मिली जब दाद तो मैं जल उठा
अपनी गजलों पर हमेशा तालियाँ अच्छी लगी

जब जरूरत हो बदल जाते हैं शुभ के भी नियम
घर में जब चूहे बढ़े तो बिल्लियां अच्छी लगी

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