फूल जंगल झील पर्वत घाटियाँ अच्छी लगी
दूर तक बच्चोँ को उड़ती तितलियाँ अच्छी लगी
जागती आँखों ने देखा इक मरुस्थल दूर तक
स्वप्न में जल में उछलती मछलियाँ अच्छी लगी
मूँगे माणिक से बदलते हैं कहाँ किस्मत के खेल
हाँ , मगर उनको पहनकर उँगलियाँ अच्छी लगी
देखकर मौसम का रुख तोतोँ के उड़ते झुंड को
धान की लंबी सुनहरी बालियाँ अच्छी लगी
दूर थे तो सबने मन के बीच सूनापन भरा
तुम निकट आए तो बादल बिजलियाँ अच्छी लगी
उसके मिसरे पर मिली जब दाद तो मैं जल उठा
अपनी गजलों पर हमेशा तालियाँ अच्छी लगी
जब जरूरत हो बदल जाते हैं शुभ के भी नियम
घर में जब चूहे बढ़े तो बिल्लियां अच्छी लगी
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