सलीका बाँस को बजने का जीवन भर नहीं होता
बिना होठोँ के बंसी का भी स्वर नहीं होता
किचन में माँ बहुत रोती है पकवानोँ की खुशबू में
किसी त्योहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता
ये सावन गर नहीं लिखता हसीँ मौसम के अफसाने
कोई भी रंग मेँहदी का हथेली पर नहीं होता
किसी भी बच्चे से उसकी माँ को वो क्योँ छीन लेता है
अगर वो देवता होता तो फिर पत्थर नहीं होता
परिँदे वो ही जा पाते हैं ऊँचे आसमानोँ तक
जिन्हेँ सूरज से जलने का तनिक भी डर नहीं होता
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