Thursday, May 27, 2010

सलीका बाँस को बजने का जीवन भर नहीं होता - JAYKRISN ROY

सलीका बाँस को बजने का जीवन भर नहीं होता
बिना होठोँ के बंसी का भी स्वर नहीं होता

किचन में माँ बहुत रोती है पकवानोँ की खुशबू में
किसी त्योहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता

ये सावन गर नहीं लिखता हसीँ मौसम के अफसाने
कोई भी रंग मेँहदी का हथेली पर नहीं होता

किसी भी बच्चे से उसकी माँ को वो क्योँ छीन लेता है
अगर वो देवता होता तो फिर पत्थर नहीं होता

परिँदे वो ही जा पाते हैं ऊँचे आसमानोँ तक
जिन्हेँ सूरज से जलने का तनिक भी डर नहीं होता

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