अपनी धरती को जब उजाड़ चुके बस्तियां चाँद पर बसाने निकले हैं
धरती पर तो ठीक से रहना नहीं आया लेकिन चाँद पर बस्तियां बनाने निकलना इंसान की किस बुद्धि का परिचायक है ....बहुत गहरे अर्थ संप्रेषित करती है आपकी यह रचना ...आपका आभार
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! शानदार प्रस्तुती! दुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें ! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
जिंदगी कैफियत से बीत जाए, अपनी
ReplyDeleteबस इतना ख्वाब ले के निकले हैं ... itna hi khwaab zaruri hai
अपनी धरती को जब उजाड़ चुके
ReplyDeleteबस्तियां चाँद पर बसाने निकले हैं
वाह! सुंदर अभिव्यक्ति।
अपनी धरती को जब उजाड़ चुके
ReplyDeleteबस्तियां चाँद पर बसाने निकले हैं
bahut sunder
badhai
rachana
अपनी धरती को जब उजाड़ चुके
ReplyDeleteबस्तियां चाँद पर बसाने निकले हैं
धरती पर तो ठीक से रहना नहीं आया लेकिन चाँद पर बस्तियां बनाने निकलना इंसान की किस बुद्धि का परिचायक है ....बहुत गहरे अर्थ संप्रेषित करती है आपकी यह रचना ...आपका आभार
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteदुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
वाह, बहुत बढिया
ReplyDeleteपरिंदे घर बनाने निकले हैं
किसी के सरकलम को निकले हैं
अपनी धरती को जब उजाड़ चुके
ReplyDeleteबस्तियां चाँद पर बसाने निकले हैं
सुंदर अभिव्यक्ति!
very appealing lines...
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग प् भी पधारने का कष्ट करें.