मैं वो बादशाह था जिसका दरबार कभी ग़ालिब, दाग और जौक से सजा करता था
हाँ! मैं ही वो बादशाह था जिसकी पोती आज चाय पिलाकर गुजारा किया
करती है!
कहते हैं, जफ़र जफ़र न था
भारतीय इतिहास का गौरवमय सफर था
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आंन्धियाँ गम की चलेंगी तो संवर जाउंगा
मैं तेरी जुल्फ नही जो रह-रह के बिखर जाउंगा
तुझसे बिछडा तो मत पूछ किधर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समंदर में उतर जाऊँगा
नाखुदा मुझसे न होगी खुशामद तेरी
मैं वो खुद्दार हूँ कश्ती से उतर जाऊँगा
मुझको सूली पे चढाने की जरुरत क्या है
मेरे हाथों से कलम छीन लो, मर जाऊँगा
मुझको दुनिया से ‘जफ़र’ कौन मिटा सकता है
मैं तो शायर हूँ किताबों में बिखर जाउंगा – बहादुर शाह जफ़र
बेहद संजीदा .....ज़फर का सफर .....
ReplyDeleteशुक्रिया इसे पढवाने का ...
मुझको सूली पे चढाने की जरुरत क्या है
ReplyDeleteमेरे हाथों से कलम छीन लो, मर जाऊँगा
waah!
ek ek alfaaz laajawab!