Sunday, March 25, 2012

बहुत फ़र्क है तुम्हारे और मेरे भारत में - त्रिपुरारि कुमार शर्मा





तुम्हारा भारत- 
एक डंडे की नोक पर फड़फड़ाता हुआ तीन रंगों का चिथड़ा है 
जो किसी दिन अपने ही पहिए के नीचे आकर 
तोड़ देगा अपना दम 
तुम्हारे दम भरने से पहले। 

मेरा भारत- 
चेतना की वह जागृत अवस्था है 
जिसे किसी भी चीज़ (शरीर) की परवाह नहीं 
जो अनंत है, असीम है 
और बह रही है निरंतर। 


तुम्हारा भारत- 
सफ़ेद काग़ज़ के टुकड़े पर 
महज कुछ लकीरों का समन्वय है 
जो एक दूसरे के ऊपर से गुज़रती हुईं 
आपस में ही उलझ कर मर जाएँगी एक दिन। 

मेरा भारत- 
एक स्वर विहीन स्वर है 
एक आकार विहीन आकार है 
जो सिमटा हुआ है ख़ुद में 
और फैला हुआ है सारे अस्तित्व पर। 

तुम्हारा भारत- 
सरहदों में सिमटा हुआ ज़मीन का एक टुकड़ा है 
जिसे तुम ‘माँ’ शब्द की आड़ में छुपाते रहे 
और करते रहे बलात्कार हर एक लम्हा 
लाँघकर निर्लज्जता की सारी सीमाओं को। 


मेरा भारत- 
शर्म के साए में पलती हुई एक युवती है 
जो सुहागरात में उठा देती है अपना घुँघट 
प्रेमी की आगोश में बुनती है एक समंदर 
एक नए जीवन को जन्म देने के लिए। 

तुम्हारा भारत- 
राजनेताओं और तथा-कथित धर्म के ठेकेदारों 
दोनों की मिली-जुली साज़िश है 
जो टूटकर बिखर जाएगी किसी दिन 
अपने ही तिलिस्म के बोझ से दब कर। 


मेरा भारत- 
कई मोतियों के बीच से गुज़रता हुआ 
माला की शक्ल में वह धागा है 
जो मोतियों के बग़ैर भी अपना वजूद रखता है। 

बहुत फ़र्क है तुम्हारे और मेरे भारत में! 

tripurarimedia@gmail.com

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...