Monday, November 1, 2010

कुछ पंक्तियाँ - प्रसाद

जो घनीभूत पीड़ा थी 
मस्तक में स्मृति सी छाई 
दुर्दिन में आंसू  बनकर 
वह आज बरसने आयी 

शशिमुख पर घूँघट डाला 
अंचल में नैन छिपाए 
जीवन की गोधुली में 
कुतूहल से तुम आये 

(-आंसू )



बीती विभावरी जाग री !

                    अम्बर पनघट  में डुबो रही                  
                      तारा घाट उषा नागरी |

खग-कुल  कुल-कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा  ,

                  लो यह लतिका भी भर लायी
                  मधु मुकुल नवल रस गागरी |

अधरों में राग अमद पिए
अलको में मलयज बंद किये

                  तू अब तक सोई है आली
                  आँखों में भरे विहाग री |

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