मस्तक में स्मृति सी छाई
दुर्दिन में आंसू बनकर
वह आज बरसने आयी
शशिमुख पर घूँघट डाला
अंचल में नैन छिपाए
जीवन की गोधुली में
कुतूहल से तुम आये
(-आंसू )
बीती विभावरी जाग री !
तारा घाट उषा नागरी |
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा ,
लो यह लतिका भी भर लायी
मधु मुकुल नवल रस गागरी |
अधरों में राग अमद पिए
अलको में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री |
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