Sunday, May 2, 2010
गम की दुनिया ख़ुशी पे भारी है : Aacharya Sarathi
जिंदगी क्यों किसी पे भारी है
गम की दुनिया ख़ुशी पे भारी है
मेरा हुम्दुम है प्यार का दरिया
वो मेरी तिश्नगी पे भारी है
मैं भी सूरज हूँ इस ज़माने का
तू मेरी रौशनी पे भारी है
खुदाश्नाशी का एक लम्हा भी
एक पूरी सदी पे भारी है
इस जामाने का ये करिश्मा है
जिंदगी आदमी पे भारी है
बात उलटी है दौर-इ हाज़िर की
तीरगी रौशनी पे भारी है
सारथि दर्द का खफा होना
क्यों तेरी जिंदगी पे भारी है

गम की दुनिया ख़ुशी पे भारी है
मेरा हुम्दुम है प्यार का दरिया
वो मेरी तिश्नगी पे भारी है
मैं भी सूरज हूँ इस ज़माने का
तू मेरी रौशनी पे भारी है
खुदाश्नाशी का एक लम्हा भी
एक पूरी सदी पे भारी है
इस जामाने का ये करिश्मा है
जिंदगी आदमी पे भारी है
बात उलटी है दौर-इ हाज़िर की
तीरगी रौशनी पे भारी है
सारथि दर्द का खफा होना
क्यों तेरी जिंदगी पे भारी है
Saturday, April 24, 2010
सौदेबाज़ों से दोस्ती न की , वो दोस्ती में खूब सौदा करना
मंज़र-ए-इश्क का फूलना फलना
ये दरिया-ए-मय है या फिर कोई दवाखाना
देर शब् तेरी जुम्बिश की आखिरी वो खलिश
हमने खोया था तुझे अब तेरा पाना
रूह को भी गम है तेरे फिराक का
कैदे-हयात में इक आस्तां है सागर-ओ-मीना
तुम थे तो एक शहर थी हयात में
अब एक दलील हूँ उस्सक बूटों का बना
इश्क एक दरिया-ए-ज़ख्म है या बाज़ीचा-ए-अत्फाल
मुझसे पूछो न , न किसी मीरां से पूछना
उसने दोस्त्दारों से पर्देकारी की, पर्देकारी में दोस्तदारी
सौदेबाज़ों से दोस्ती न की , वो दोस्ती में खूब सौदा करना
आज की रात फिर नही पढ़ा, ग़ज़ल लिख्खा है अनुपम ने
जो अब तलक समझ में नही आया, तो क्या अब समझ के करना !
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